तुम मेरे गुनाहों को इस कदर फना कर दो,
जो कुछ है सवाल, उनमें जवाब भर दो।
मैं जिन्दगी की परतें न कभी खोलूंगी,
इस अनसुने जहाँ से कुछ न बोलूंगी,
बस तुम साथ मेरे इतनी वफा कर दो.....
मुझे आजाद न करो....लेकिन,
मेरे शब्दों को रिहा कर दो।
मेरी आंखों में चन्द कतरे बहते आंसू के,
मन में टीस उठाती, कुछ रिश्तों की गांठे।
और पाकर खोने की, कुछ उलझी-सी बातें।
जीवन में मिला, कितना मर्म छिपा है मुझमें,
मिले तमाम जख्मों को मैं कभी न तोलूंगी?
बस तुम मुझ पर इतनी दया कर दो.....
मुझे आजाद न करो....लेकिन,
मेरे शब्दों को रिहा कर दो।
- कोमल वर्मा
bahut sundar rachna ||
जवाब देंहटाएंआन्तरिक भावों के सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएं..........दिल को छू लेने वाली प्रस्तुती
जवाब देंहटाएंइमानदार
जवाब देंहटाएंऔर सच्ची कविता .....
बधाई.
bhaut bhut dhanyad ravikar ji.
जवाब देंहटाएंaaderniya sharad ji aapke pratikriya ke liye dhanyad aage bhi intjar rhega.
जवाब देंहटाएंdhanyad abhishek ji
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