कोमल वर्मा
कुल्टा, करमजली, चालबाज, धोखेबाज, आवारा, दूसरी औरत कहीं की पता था फिर भी फंसा लिया ना...... यही सब बातें सुननी पड़ती है ना दूसरी औरत को। हो सकता है इससे भी ज्यादा। एक व्यक्ति, एक घर, एक बिरादरी ही नहीं बल्कि सारा समाज उसे गालियां देता है लेकिन शायद उसकी तड़प किसी को नहीं दिखाई देती जो ब्याहता न होते हुए भी किसी अन्य के पति के लिए पूरा जीवन समर्पित कर देती है। मेरे कहने का तात्पर्य यह कतई नहीं कि सारी दूसरी औरत अच्छी होती है या हर मर्द दूसरी औरत रखे। जहां तक आंकड़ों का सवाल है दूसरी औरत की परछाईं भी बुरी होती है परन्तु यदि समाज के दायरों के परे ऐसे रिश्ते पनपते हैं तो ये कहां का इंसाफ है कि दोषी केवल एक को ही ठहरा कर उसे हेय दृष्टि से देखा जाए। मेरे पास कौशल्या इसका एक जीता जागता उदाहरण है। बचपन से अच्छे संस्कारों में पली सुशिक्षित सुंदर एवं गुणवान कौशल्या दूसरी औरत होने का एक ऐसा उदाहरण है जो आप सभी को एक बार सोचने पर अवश्य विवश कर देगा। एमए प्रथम वर्ष से ही कौशल्या आत्मनिर्भर हो गई। परिवार को उसके चाल चलन एवं आत्मनिर्भरता को लेकर बड़ा गर्व होता था। स्कूल में पढ़ाने से लेकर घर आने तक का उसका समय निर्धारित था। किसी को उससे कहीं कोई शिकायत नहीं थी। धैर्य और आत्मीयता उसकी पूंजी थी। बात उन दिनों की है जब स्कूल में विद्यार्थियों की बढ़ती संख्या के कारण प्रत्येक कक्षा के दो भाग किए जा रहे थे। स्टाफ रूम में इस बात के चर्चे थे। जल्दि ही शिक्षको की नियुक्ति भी हो गयी। स्टाफ रूम में चार नए शिक्षक नजर आए। शिखर शर्मा किसी ने आवाज लगाई... आपका विषय क्या है? विज्ञान दूसरी ओर से उत्तर आया। नयी भर्ती में शिखर शर्मा के अजिरिक्त तीन महिलाएं थी। शिखर शर्मा का बात करने का तरीका, उनका देखने का अंदाज सब अलग था। हर किसी से कटने वाली कौशल्या उनकी ओर खिंचने लगी थी। कहते हैं चेहरे के हाव भाव दिल का हाल बयां कर देते हैं। चंद रोज की मुलाकात ने दोनों को एक दूसरे के काफी करीब ला दिया था। परिवार ने भी उसके बदले हालातों को भांप लिया। जिस ओर देखो बस उन्हीं की बातें होने लगी। पारिवार की बदनामी एवं अन्यत्र कीहे विवाह होने की आशंका से डरी कौशल्या ने शिखर से इस मामले में बात की। उसके बाद जो उसे पता लगा उससे तो जैसे कौशल्या के होश उड़ गए। शिखर पहले से विवाहित था। उसके दो बच्चे भी थे। कौशल्या जैसे अपने दर्द के समुंदर में दफन हो गई हो। वह क्या करे? प्रेम इंसान को सम्पूर्ण बनाता है। परन्तु सामाजिक परिधि इस प्रकार के प्रेम को गाली समझती है। परिवार का तिरस्कार, समाज की घृणा, शिखर के घर वालों की लताड़ क्या प्रेम के बदले में वो यह सब सहने के लिए तैयार हो जाए या फिर जहां परिवार कहे वहां शादी करके सुकून की जिन्दगी जिए। क्या वह अपने मिथ्या रिश्ते के लिए परिवार का प्रेम, भरोसा सब तोड दे और वह स्वंय को स्वार्थी व चरित्रहीन बेटी की कतार मे खड़ा कर दे? शिखर लगातार अपने प्रेम की दुहाई दिए जा रहा था। शायद यह द्वन्द उसके जीवन का पहला द्वन्द था। प्रेम के मोहपाश में बंधी कौशल्या ने स्वयं को शिखर के प्रेम के हवाले कर दिया और परिवार व समाज के खिलाफ दूसरी औरत बनना स्वीकार कर लिया। आप और हम समझ सकते हैं कि इस फैसले पर उसे हर किसी से कितना कुछ सुनने को नहीं मिला होगा। इसके साथ कितना अमानवीय व्यवहार हुआ होगा। उसने शिखर से जुड़े हर रिश्ते को दिल से स्वीकारा पर उसे किसी ने नहीं। शिखर की पत्नी उसके घरवालो ने उस निर्दोष के साथ सीमा हीन असभ्य व्यवहार किया। उसके एकान्त के अतिरिक्त उसे सुनने वाला कोई नहीं था। धीरे धीरे शिखर भी उससे बिमुख हो गया। उसके किराए के कमरे पर वह कभी कभार ही आता था। एक दिन एक भयानक स्वप्न की तरह शिखर की एक आकस्मिक दुर्घटना में मृत्यु हो गई इसका जिम्मेदार भी कौशल्या को ही ठहराया गया। ईश्वर की विडम्बना देखिए शिखर की ब्याहता को उससे सास ससुर ने बच्चों सहित घर से निकाल दिया। यहां तकदीर का खेल कि उसी दूसरी औरत ने जिसे उस घर से अपशब्दो के अतिरिक्त कुछ ना मिला था,उन्हें आश्रय दिया। उनके बच्चों को उच्च शिक्षा दी, संस्कार दिए। समाज इसे स्वीकारे या ना स्वीकारे परन्तु शिखर की पत्नी के लिए अब वो उसकी स्वार्थी सौतन नहीं है। उसके बच्चों ने भी अपने पिता की दूसरी औरत के त्याग, समर्पण को समझा। और अपने ह्रदय सेे उसकी पुरानी बेकार, दूसरी औरत की छवि को धूमिल कर दिया था और उसका स्थान छोटी मां ने ले लिया था। आज भी कौशल्या उस अजीबो गरीब रिश्ते में बंधे परिवार का लालन पालन कर रही है। शायद उसका समर्पण समाज में उसे सर उठाकर चलने का अधिकार दे सके। परन्तु प्रश्न अब भी वही है कि समाज उसे क्या अधिकार देगा.......?
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