रविवार, जून 05, 2011

एक पत्र मां के नाम...।

प्रिय माँ,

टेलीफोन और मोबाइल के युग में मेरा यह पत्र पाकर आपको आश्चर्य हो रहा है न .... मां। आज मैंने सोचा जिस तरह मैं आपके विचारों और सीख को आज तलक पढ़ती रही हूं, उन पर चलकर खुद की जिंदगी बेहतर बनाने के लिये। आज आठ मई के मुकद्दस मौके पर तमाम कही-अनकही बातें और आपकी यादें, सहज ही जब कागज पर उभर आयीं, तब आप जैसी मुकम्मल मां की तरह ही मेरे यह विचार भी एक मुकम्मल पत्र की शक्ल अख्तियार कर बैठे। सो... लगा, क्यूं न अपनी भावनाएं पत्र के रूप में लिखकर इसे आपके जीवन का ही नहीं अपनी जिंदगी का भी दस्तावेज बना लूं?
मां, जब भी आपसे बात होती है, आप मेरा सब हाल पूछ लेती हो, लेकिन मेरे बार-बार पूछने पर भी अपना हाल-चाल क्यूं बताना भूल जाती हो, शिकायत है यह?
मां, मैंने आपके मजबूत कांधे देखे हंै। परिवार के हर दु:ख को मैंने आपको अपने आंचल में दुबकाते देखा है, और आसमान से भी बड़ा आपके आंचल को ही हम सभी की खुशीयों को पनाह देते भी? कदम-दर-कदम आप हमारे लिए परेशानी से लड़ती रहीं। तमाम रातें अपनी नींद खो कर, मुझे लोरी सुना सुलाती रहीं। झाड़ू बुहारते हुये कचरे की तरह मेरे डर / संशय को मेरे मन से आप बुहारती रहीं, ताकि मैं नेक राह पर चलते हुये जिंदगी की तमाम मुश्किलातों को आसानी से पार कर लूं। मेरी हर सफलता पर मुझसे ज्यादा आप ही खुश दिखीं, और असफलता पर मुझसे ज्यादा गमगीन भी? जिंदगी में तमाम लोग आये और चले गये, लेकिन आप हर मौसम में मेरे साथ खड़ी दिखी, इतना स्नेह, इतना प्रेम, इतनी दुआ आपसे ही मिल सकती है या पा सकती हूँ मां।
मां, कोशिश करूंगी कि जाने-अनजाने मुझसे कभी ऐसी कोई गलती न हो जाये, जो आपको पीड़ा पहुंचाये और कभी अतीत में ऐसा हुआ हो तो क्षमा कर देना।
मां... बातें... बहुत हैं, बहुत कुछ लिखना चाहती हूं लेकिन आंखों में आपका अक्स उभर चला है, आपकी तमाम यादों से मेरी आंखें नम हो चली है, सो यह अक्षर अब धुंधले हो चले हैं, लिख पाना मुश्किल है। साथ ही यह बूंदे भी कहीं कागज पर टपक कर अक्षरों को गीला करती यह नमीं आपसे  मेरी भावनाओं की चुगली न कर बैठे, डरती हूं?
सो... अपने विचारों को विराम दे रही हूं?
मां, अपना ख्याल मेरी यादों से ज्यादा रखना, दवा समय पर लेती रहना, जल्द आने की कोशिश करूंगी।

आपकी बेटी
कनक।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें