शनिवार, अप्रैल 14, 2012

तुम भी साथ नही


क्या करें हम शिकायत किसी से, खुदगर्ज जमाना है।
जो महसूसे न दर्द,  क्यूं उसे अपना दर्द दिखलाना है।

मुझको अपनी ही चीखों का शोर सुनाई देता है अक्सर,
खोते-खोते जान लिया अब, उसको भी खो जाना है।

मुठ्ठी में चिंगारी और जख्मों की आहट सुनी मैंने,
कैसी जोड़ी प्रीत तुझसे , जो नश्तर सा चुभ जाना है।

सूनी राहें, मंजिल अंजानी और तुम भी साथ नहीं,
अपनापन पाने की चाह में मुझको चलते जाना है।

अंजाम  की  फ्रिक  में आगाज की वेदना सही मैंने,
पुरानी उम्मीदें छोड़नी हैं, अब नए सपने  देखना है।

  • कोमल वर्मा  ‘कनक’

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