मंगलवार, जून 07, 2011

माँ के साथ मेरी वो एक रात....



कोमल वर्मा

अनाथ होकर जीना कैसा लगता है, ये शायद मैं कभी नहीं बता सकती और न इस विरह को झेलना चाहूंगी। सच किसी भी बच्चे के लिए उसके माता-पिता से अलग होना कितना दुखद होता है। कुछ साल हॉस्टल में बिताने हों तो मन इतना अनमना हो जाता है, उस पर उनसे हमेशा की जुदाई तो...। लेकिन तबस्सुम ने अपनी यह वेदना जन्म से झेली है। जन्म से उसने मां के स्थान पर अनाथ आश्रम की आया का स्पर्श पहचाना। उसे नहीं पता था कि मां की लोरियां किसे कहते हैं। सैकड़ों की संख्या में सोयी हुई बच्चियों को कोई लोरी कहां से सुनाएगा भला....। ममता का हर क्षण उसने अकेले रहकर काटा। वह कभी-कभी सोचती थी कि कितनी निर्दयी होगी वो मां जो अपनी नवजात बच्ची को पहला स्पर्श देने के समय उसे अनाथालय छोड़ गई। उसके कोमल मन ने उस मां की एक अमानवीय छवि बना ली थी जो महज नाम की पत्ती देकर उसे भूल गई। चौदह वर्ष की उम्र में उसे एकाएक पता लगा कि अनाथाश्रम में उससे एक महिला मिलने आई है जो समाज की एक उच्च हस्ती है। जब मन टटोला तो वही अनचाहा चेहरा सामने आया। एक सामान्य व्यवहार की तरह तबस्सुम उनसे मिलने चली गई। अनाथ आश्रम की बड़ी दीदी के अनुसार वह एक समाज सेविका थी जो अनाथ आश्रम में चंदा दान करती थी। उसे देख उन्होंने तबस्सुम के साथ एक दिन के लिए रहने की इच्छा जताई। तबस्सुम की तरफ से साफ इनकार था। ममता की प्यासी वो जाना तो चाहती थी लेकिन शायद उसकी चौदह वर्षीय वेदना, अकेलापन उसे न जाने को विवश कर रहा था। फिर भी बिना उसकी मर्जी जाने उसे उनके साथ भेज दिया गया। कुछ समय बाद बड़े चौराहे से छोटी गलियों का सफर तय करके वो उसेे एक अस्पताल में ले गईं जहां बेसुध सोयी एक औरत और पास खड़ी डाक्टर व नर्सों का झुंड था। उसके साथ आई उस औरस ने एकाएक इशारा किया। बेटा ये आखिरी सांसें गिनती औरत तुम्हारी अम्मी है....। शायद ऐसा झटका उसे पहली बार लगा। मां को इस हालत में देख वो पिछली सारी वेदना, छवि भूलकर उनसे लिपट कर रोने लगी। जख्मी हृदय से जैसे आंसुओं के स्थान पर रक्त बह रहा है। मन में सवाल तो थे क्या कारण था... ? क्यूं उसे छोड़ा... पर मां की अन्तिम सांसों में वह उन्हें पाकर खोना नहीं चाहती थी। उस समय तक सब वहां से जा चुके थे। मां ने आंखें खोलीं उसका सारा दुलार उसकी आंखों से बह रहा था। एकाएक बोली... तुझे बहुत गुस्सा आ रहा होगा न कि चौदह वर्ष तक तेरी मां ने तेरी सुध नहीं ली। पर बेटा तेरे जन्म के बाद से मैं कोमा में हूं। तेरे पिता ने मेरे साथ धोखा किया और मुझसे शादी करके किसी और के साथ रहने चले गए। आज तबस्सुम को उसके हर सवाल का जवाब मिल गया था। पर फिर भी वह सुनना नहीं चाह रही थी। उसे मां को चौदह वर्ष तक का प्यार चाहिए था। ढेर सारा प्यार। रात भर मां का आंचल पकड़कर रोती रही। न जाने कब आंख लगी। सुबह उठी तो डाक्टर नर्स सभी मां को ट्रीट कर रहे थे। मां जा चुकी थी उसेे हमेशा-हमेशा के लिए छोड़कर। उस एक रात में उसे पूरी उम्र का लाड़ देकर। शायद अब उनके दिल में बेटी से मिलने का सुख था। पर तबस्सुम मां के साथ अपनी उस एक रात को कभी न भुला पाई। आज वह एक सभ्य परिवार की बहू है और शायद यह उसके संस्कार ही हैं कि सास के रूप में उसे अपार स्नेह करने वाली मां मिली है। पर माँ के दर्द की टीस उसके हृदय में आज भी है।

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