मंगलवार, जून 07, 2011

यादों की सौगात






कोमल वर्मा

कई बार यादें खुशी देती हैं तो कभी रुला देती हैं। यादें तो यादें हैं...। भावुक पलों में मीठी यादों का रोमानी एहसास एक अजीब सी सिहरन पैदा कर देता है। हम हंसते हंसते रो पड़ते हैं और रोते रोते हंसने लगते हैं। क्या आपने कभी पुराने फोटो एल्बम पलटते हुए यादों के संसार में लौटे हैं। इसका अपना एक अलग ही अनुभव है। यादें कुलबुलाती हैं। यहां तक कि हमारे इन बाक्स में पड़े मैसेज हमें यादों के पुराने संसार में ले जाते हैं। सुकून देती है यादें...
कभी कभी तो ख्वाबों में साक्षात प्रकट हो जाती है। लोग चले जाते हैं रह जाती हैं तो बस यादें। लोग कहते हैं याद उन बातों को किया जाता है जो हम भूल जाते हैं पर जब सब याद हो तो... हम यादों की कठपुतली बन जाते हैं। एक खूबसूरत एहसास जगाती है यादें। वे हमारी सच्ची दोस्त हैं। इस दोहरे संसार में जब खिड़की से झांकती हैं तो आसमान में यादों के टुकड़े दिखते हैं। कहते हैं वक्त हर जख्म पर मरहम लगा देता है, पर यादों का कोई वक्त नहीं होता। जज्बात जब उमड़ते हैं वो हमें समेटने आ जाती हैं। यादें किसी के साथ भी क्यूं न जुड़ी हों, उनके साथ वो पल खुद गुनगुनाने लगते हैं। यूं तो लोग अपनी अपनी अच्छी बुरी यादें स्वयं बनाते हैं। कुछ कुछ बदलने से बहुत कुछ बदल जाता है। परीक्षाएं लगभग समाप्त हो चुकी हैं। पेपर कुछ अच्छे गए कुछ बुरे। दोस्तों के साथ वो रात भर पढ़ाई। समय मिलते ही फोन पर गपशप, गर्लफ्रेंड की बुराई सब छुट्टियों की भेंट चढ़ जाती है और फिर रह जती हैं बस यादें।
सपना और अभिषेक की तो पूरी जिन्दगी यादों में ही सिमट गई। बीएससी में प्रवेश फार्म भरने के समय दोनों की नन्हीं सी मुलाकात हुई थी। पर क्या पता था ये दोस्ती आगे जाकर इतनी गहरी हो जाएगी। कालेज में लड़ते झगड़े सारा काम एक साथ करते। वे दोस्ती के एक बहुत अच्छे रिश्ते में बंध चुके थे। दोस्ती अपने आप में एक बहुत प्यारा गिफ्ट है। जहां किसी शंका अथवा औपचाकिता की गुंजाइश नहीं रहती। बीएससी के तीन साल कैसे बीत गए पता ही नहीं चला। अब तो घर जैसा व्यवहार होने लगा था। दोनों का एक दूसरे के घर आना जाना रहता था। कहीं न कहीं उनकी दोस्ती एक नया रूप ले रही थी, पर अब भी दोनों इस बात से अंजान थे। अभिषेक का सीधापन सपना को बहुत अच्छा लगता था। उसकी हर बात में सपना की अंतिम राय होती थी। सपना के साथ भी कुछ ऐसा ही था। दोनों ने साथ में एमएससी का फार्म भरा। दीन दुनिया की खैर खबर लिए बिना दोनों बस एक दूसरे के साथ खुश रहते हैं। कहते हैं रिश्ते जब करवट लेते हैं तो वक्त उनकी जिम्मेदारियां बढ़ा देता है। हुआ भी यही दोनों की दोस्ती इतनी ज्यादा गहरी हो गई कि एक दूसरे को किसी अन्य के साथ देखना इन्हें चुभने लगा। अभिषेक ने बातों ही बातों में सपना के समक्ष शादी का प्रस्ताव रख दिया। थोड़ी बहुत ना नुकुर के बाद सपना ने भी इसे स्वीकार कर लिया। अब घरवालों को मनाना, उन्हें तैयार करना, उन दोनों के हाथ में था। अभिषेक ने विश्वास व भोलेपन से अपने घरवालों को सपना और अपने विषय में सब बता
दिया और अपेक्षा के अनुरूप वो मान भी गए पर सपना के मन में शायद कुछ और ही था। अभिषेक के बार बार कहने पर सपना मामले को टालती रही। अभिषेक का परिवार सपना के परिवार से मिलने की बातें करता पर अभिषेक के पास इन बातों का कोई जवाब नहीं था। सपना का व्यवहार दिन ब दिन  बदलता गया। अभिषेक का विश्वास सपना से और उन पांच सालों से जब वह उसे जानता था। उससे जुड़ा हुआ था। अभिषेक के बार बार फोन करने पर सपना उससे कटने लगी। अभिषेक की मुस्कान फीकी पड़ती गई। उसे क्या पता था दोस्ती के आगे का एक कदम उसकी दोस्ती भी छीन लेगा। इस स्थिति में असहज होना लाजमी था। एक दिन अभिषेक की मुलाकात सपना की सहेली से हुई उसने जो बताया अभिषेक उसके बाद फिर उठ नहीं पाया। सपना की शादी बहुत पहले तय हो चुकी थी। जिन्दगी की इतनी बड़ी सच्चाई से अनभिज्ञ अभिषेक अपने अटूट विश्वास की धोखेबाजी सहन न कर पाया। पांच साल की दोस्ती में सपना ने कभी उससे कोई बात न छिपाई थी। फिर अब ऐसा क्या हो गया। ये सब करना था तो वो क्यूं किया। दर्द से निकलना इतना आसान नहीं होता। एक दिन कोई साथ रहता है तो वह लम्हा भी यादों में शामिल हो जाता है। जहां वो बेकसूर अभिषेक की पूरी जिन्दगी यादों की पहेली बन गई थी। सपना ने ऐसा क्यूं किया। क्यूं अंधेरे में रखा... इन्हीं सब विचारों के साथ अभिषेक की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती गई। क्या शेष था इसके पास। जब प्यार का अहसास हुआ तो वो खो गया। अब वो कोई रिश्ता नहीं रह गया था। ये कैसी यादों की टीस है जो भूलने पर ज्यादा पीड़ा देती है। कुछ लोग मरकर इनसे छुटकारा पा लेते हैं तो कुछ वक्त के साथ संभल जाते हैं पर फिर जब उन यादों का साक्षात्कार होता है तो पुराने जख्म फिर ताजा हो जाते हैं समय के साथ अभिषेक भी संभल गया।
सपना तो फिर भी खुश रह लेगी, पर सपना के साथ गुजारे खूबसूरत लम्हें शायद वो ना भुला पाए। जिन्दगी ने उसे एक सीख भी दी कि उसे अब जल्द ही किसी पर विश्वास नहीं करना है। जाने कितने ही अभिषेक और सपना इन यादों की परिभाषा गढ़ते हैं। इंसान में अगर भावनाएं न होतीं तो कितना अच्छा होता, तब उसे प्यार का एहसास होता न पीड़ा का। सब कुछ सामान्य ही रहता। कुछ छूट जाती है। कुछ रूठ जाती है पर जिन्दगी तो फिर भी चलती रहती है अनवरत उन्हीं यादों के संसार के साथ। जिन्दगी के इन्हीं विभिन्न रंग रूप और खुरापाती हादसों के चलते मैंने भी यदि किसी की स्मृति में अपनी मायूस यादें भर दी हों तो मुझे क्षमा करना। सचमुच यादें बहुत खूबसूरत होती हैं। चाहकर भी कोई इनसे अलग नहीं रह पाता। साथ कब आदत और आदत कब जरूरत बन जाती है पता ही नहीं चलता। उन यादों में हर सस्ती चीज कितनी कीमती हो जाती है।


जिन्दगी इस कदर भी गुनाहगार न बने
कोई किसी के प्यार में बीमार न बने
यादों की कश्ती वो जिन्हें पार ले जाती है
वो समुन्दर तो बने पर वो ज्वार न बने।


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