मंगलवार, जून 07, 2011

अनमोल मोतियों का सैलाब दिया तूने ..

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कोमल वर्मा
छोटे से आशियां में पूरी दुनिया बसाकर,दहलीज के दोनों पार फैलाव किया तूने,हर रूप में संवारा, हर रंग में निखारा,अनमोल मोतियों का सैलाब दिया तूने।
आठ मार्च महिला दिवस के रूप में दुनिया भर में मनाया जा रहा है। मोहिनी परिवार इस शुभ दिन पर ऐसी महिलाओं को नमन् करना चाहता है जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन अपने परिवार एवं समाज को समर्पित कर दिया। हर युग में प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं ने स्वयं को साबित किया है। सीता, सावित्री, द्रौपदी, अहिल्याबाई, झांसी की रानी, लक्ष्मीबाई, रानी दुर्गावती, सरोजनी नायडू, लता मंगेशकर, प्रतिभा पाटिल, सुष्मिता सेन, मदर टेरेसा, इंदिरा गांधी, इन्द्रा नूयी आदि बहुआयामी व्यक्तित्व की धनी ये महिलाएं नारी जाति का गौरव हैं। इन सभी महिलाओं में एक बात कॉमन है जो इन्हें श्रेष्ठ साबित करती है, वह है आत्मविश्वास, दृढ़ निश्चय, लगन, त्याग, समर्पण, कड़ी मेहनत व सार्थक प्रयास हमें निर्धारित लक्ष्य की ओर प्रेरित करते हैं जिससे कोई भी साधारण महिला अनुकरणीय बन जाती है।औरत, नारी, ी, मोहिनी, यामिनी, सुन्दरी, प्रकृति, शक्ति, स्नेह, ममता, स्नेहमयी, तपस्वी, भावुक, त्याग आदि महिला के अनेकों रूप हैं। कहीं उसकी सीमा घर का आंगन, परिवार, बच्चों की किलकारी होती है तो कहीं सम्पूर्ण देश की बागडोर संभालने वाली शक्ति के रूप होती है। इस प्रकार अपने संस्कारों को आधुनिकता के आंचल में सहेजती हुई वो निर्लज्जता के लांछन रूपी काले दाग से स्वयं को बचाती हुई आगे बढ़ रही है। पुरुषों की इस दुनिया में वह एक आदर्श शिक्षिका भी है और माँ भी। हर सफल पुरुष को किसी न किसी नारी का संबल प्राप्त है। सहनशीलता व कर्तव्यपरायणता में वह हर दृष्टि से पुरुषों से अग्रणी है।
धरोहर हैं बेटियां....
इक्कीसवीं सदी की महिला ने स्वयं की शक्ति को पहचान लिया है। आज वह प्रेम, स्नेह व मातृत्व के साथ शक्ति सम्पन्न भी है। आज के समय में उनमें गजब का आत्मविश्वास है, वर्तमान में तमाम कुरीतियों व कुंठाओं से परे आज माताएं बेटियों के जन्म पर अफसोस नहीं जतातीं। हमारे आसपास ही ऐसे कई परिवार मिल जाएंगे जिनकी इकलौती संतान बेटी है अथवा दोनों बेटियां हैं। श्रीमती एवं श्री सुनील कुमार जैन, श्रीमती एवं श्री बृजेश कुमार वाष्र्णेय, श्रीमती एवं श्री अतुल कुलश्रेष्ठ, श्रीमती एवं श्री किशन सिंह, श्रीमती एवं श्री जयसिंह वर्मा, श्रीमती एवं श्री पदमचंद आदि कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिनके परिवार में केवल बेटियां हैं। वे भी उच्च शिक्षा व संस्कार से परिपूर्ण अपने परिवार का नाम रोशन कर रही हैं। ऐसे भी परिवार हैं जहां बेटियां गोद ली जाती हैं। साथ ही सम्पत्ति में अधिकार व वर चुनने की स्वतंत्रता भी दी जा रही है।औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाजार दिया....
क्या खास है...
महानगरों में उच्च शिक्षित युवतियों का छोटे-बड़े शहरों व गांवों से आकर रहना, नौकरी करना, अपनी पहचान बनाना इस बात को साबित करता है कि युवतियों के आत्मविश्वास में गजब का इजाफा हुआ है। अपनी अस्मिता को बनाए रखते हुए वह बड़ी आसानी से देश तो क्या विदेश में भी रहती, पढ़ती या नौकरी कर सकती हैं। उसने अपनी सही बात सही तरीके से कहना सीख लिया है। संघर्ष करते-करते अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उसने स्वयं हासिल कर ली है। अन्याय का विरोध के चलते उनके परिणामों से भयभीत होना भी छोड़ दिया है। वह सही अर्थों में पति की सच्ची दोस्त, सखी, सहधर्मिणी बन चुकी है। आज वह सक्षम व हर सुख सुविधा जुटाने में बराबर की जिम्मेदारी लेती सफल मां, मायके व ससुराल के बीच सेतु बनती बेटी, बहू, सफल प्रबंधक व सहयोगी है।
स्नेह का प्रतीक...
ी का स्वरूप पानी की तरह है। जिस रंग में घोलते हैं उसी रंग का हो जाता है। उसे रिश्तों को विभाजित करना नहीं आता वह तो सिर्फ उन्हें भावनाओं के अनुरूप ढाल लेती है। मकान को घर व घर में गृहस्थी को वह पूर्ण बनाती है। वह उस आंगन की मिट्टी को अपनी ममता, स्नेह, सामंजस्य व तटस्थता से खींच कर पवित्र कर देती है।हारकर भी जीतती है...आज की महिला जिस जवाबदारी से व्यवसायिक दुनिया में सफल है उतनी ही कुशलता से घर गृहस्थी की भी जिम्मेदारी निभा रही है। आज पुरुष प्रधान समाज में महिला कितनी भी तरक्की कर ले। उसे पुरुष का अहं झेलना पड़ता है। पुरुष प्रधान समाज में स्वयं का अस्तित्व बनाए रखना कोई आसान काम नहीं है। समझौता ी का दूसरा नाम है। समाज में विवाहित ी को मान व इज्जत से देखा जाता है। आजीवन अविवाहित को नहीं। भारतीय नारी में अकूत सहनशीलता होती है। तभी तो बिना शिकायत के अपना जीवन अपने पति बच्चों व घरवालों की खुशी के लिए बांट देती है। यही फर्क है दुनिया भर की महिलाओं व भारतीय महिलाओं में। इसलिए आज भारत अपेक्षाकृत ज्यादा सुखी है। यहां लोग परिवार को प्रथम स्थान देते हैं।
एक पहलू यह भी...
आमतौर पर लोग आज भी महिलाओं को दोयम दर्जे का नागरिक मानते हैं। कारण चाहे सामाजिक हो या आर्थिक, परिणाम हमारे सामने हैं। आज भी दहेज के लिए हजारों युवितियां जलाई जा रही हैं। रोज न जाने कितनी कमसिनें यौन शोषण का शिकार बनती हैं और कितनी ही अपनी सम्पत्ति से बेदखल होकर दर-दर भटकती हैं। गांव से लेकर बड़े शहरों तक यदि महिला आर्थिक व दैहिक शोषण की सूची तैयार की जाए तो औपचारिक कानूनी सुरसा की धज्जियां उड़ जाएंगी। कहीं, कानून तो कहीं उसकी पेचीदगियां उसको शोषित होने पर मजबूर कर देती हैं।
कुल मिलाकर एक द्वंद्व से गुजर रही औरत अपना अस्तित्व कायम रखने के लिए लड़ रही है। कभी दहलीज के अन्दर तो कभी बाहर तो कभी अपनी ही नस्ल से या कभी खुद से, उसके लिए हर दिन एक जीवन है। जिसे उसे पूरी ईमानदारी से जीकर हर रात क्या खोया क्या पाया का हिसाब लगाकर एक नये दिन को जन्म देना है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि एक दिन पहले वह कितने नुकसान में रही। वह फिर नयी उम्मीद के साथ जिएगी अपनी कोमल भावनाओं को उसी रूप में सहेजने के लिए चाहे वो ऊपर से कितनी ही कठोर क्यों न हो जाए।

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