शनिवार, मार्च 24, 2012

रिश्ता


गुमनाम नहीं, पर है कोई नाम नहीं।
रिश्ते की है आहट नई, इंकार नहीं।

उसकी आवाज रस घोले कानों में,
मुझको जो देता है दिखलाई नहीं।

कोमल सा अहसास है मेरे मन का यह,
चाहा जिसने मुझको, वो मेरे पास नहीं।

अब तो जीवन-मृत्यु तक है रिश्ता उससे,
प्रेम  दृष्टि में मेरा मन अब अस्थिर नहीं।


जब तलक सांसों में है अंकुर,
छूटे अपना तब तक हाथों से हाथ नहीं।

  • कोमल वर्मा ‘कनक’

2 टिप्‍पणियां: