बुधवार, मार्च 28, 2012

निगाहों में बसा लो मुझको


खुशबूओं को मिले रास्ता, गुलों की ख्वाहिश है।
मत बांधो वेग को, हवाओं   की यह गुजारिश है।

परिन्दों को दिया हौसला, आकाश ने परवाज का,
सांझ को लौट आएंगें, शजर की यह ख्वाहिश है।

यह  जख्म  आखिरी  हो,  हमदम  चाहती हूं मैं,
आंचल डाल दूं, नहीं कोई जख्म-ए-नुमाइश है।

जो  कह  दूं चाहते  कम  हो, सादगी  है  यह  हमारी,
कम न लगे तुम्हें कभी, इश्क की यह आजमाइश है।

अपने  दिल  की  दुनियां  में  दे  दो पनाह मुझको,
निगाहों में बसा लो मुझको, हमारी यह गुजारिश है।

  • कोमल वर्मा  ‘कनक’


शनिवार, मार्च 24, 2012

रिश्ता


गुमनाम नहीं, पर है कोई नाम नहीं।
रिश्ते की है आहट नई, इंकार नहीं।

उसकी आवाज रस घोले कानों में,
मुझको जो देता है दिखलाई नहीं।

कोमल सा अहसास है मेरे मन का यह,
चाहा जिसने मुझको, वो मेरे पास नहीं।

अब तो जीवन-मृत्यु तक है रिश्ता उससे,
प्रेम  दृष्टि में मेरा मन अब अस्थिर नहीं।


जब तलक सांसों में है अंकुर,
छूटे अपना तब तक हाथों से हाथ नहीं।

  • कोमल वर्मा ‘कनक’

गुरुवार, मार्च 15, 2012

कोशिश की मैनें


चुन-चुन कर जोड़ी मैनें खुशियां।
और फिर सराबोर हुई मैं इसमें ।

जब देखा आंचल अपना मैनें ,
दामन खाली था पिघल गई मैं।

जो आस लगाई वो झूठी निकली,
आंखों में जब प्रीत सजाई मैनें।

कुछ फूलों ने अश्कों को सहलाया था,
जो बनकर फिर खार चुभे मुझको।

जो बुने थे  सपने वो रहे अधूरे, लेकिन ,
उनमें रंग भरने की कोशिश की मैनें।

पलकों से बरस जाती है कुछ बूंदें,
पर मेरे  हृदय ने धरा है अब धीरज।

  • कोमल वर्मा  ‘कनक’