तुम मेरे गुनाहों को इस कदर फना कर दो,
जो कुछ है सवाल, उनमें जवाब भर दो।
मैं जिन्दगी की परतें न कभी खोलूंगी,
इस अनसुने जहाँ से कुछ न बोलूंगी,
बस तुम साथ मेरे इतनी वफा कर दो.....
मुझे आजाद न करो....लेकिन,
मेरे शब्दों को रिहा कर दो।
मेरी आंखों में चन्द कतरे बहते आंसू के,
मन में टीस उठाती, कुछ रिश्तों की गांठे।
और पाकर खोने की, कुछ उलझी-सी बातें।
जीवन में मिला, कितना मर्म छिपा है मुझमें,
मिले तमाम जख्मों को मैं कभी न तोलूंगी?
बस तुम मुझ पर इतनी दया कर दो.....
मुझे आजाद न करो....लेकिन,
मेरे शब्दों को रिहा कर दो।
- कोमल वर्मा